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टेक न्यूज़ टुडे लाइव अपडेट: तेजी से तकनीकी विकास के प्रभुत्व वाले युग में, नवीनतम प्रौद्योगिकी समाचारों से अवगत रहना आवश्यक है। यह खंड हमारी दुनिया को आकार देने वाली नवीनतम प्रगति और सफलताओं पर एक व्यापक नज़र पेश करता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और क्वांटम कंप्यूटिंग में अत्याधुनिक विकास से लेकर उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और साइबर सुरक्षा पर अपडेट तक, हमारा कवरेज तकनीक से संबंधित विषयों के व्यापक स्पेक्ट्रम तक फैला हुआ है। चाहे आप तकनीकी उत्साही हों, क्षेत्र में पेशेवर हों, या बस इस बारे में उत्सुक हों कि तकनीकी परिवर्तन आपके दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं, हमारे अपडेट आपको प्रौद्योगिकी की लगातार बदलती दुनिया में सूचित और आगे रखने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
अस्वीकरण: यह एक एआई-जनरेटेड लाइव ब्लॉग है और इसे लाइवमिंट स्टाफ द्वारा संपादित नहीं किया गया है।
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टेक्नॉलॉजी
सिद्धारमैया को मरा बताने वाली गलती, Social media translation ने मचाया तूफान

Social media translation: आजकल टेक्नोलॉजी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि अब किसी भी भाषा को समझना या लिखना मुश्किल नहीं रहा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे Facebook, Instagram, X और Google पर अब मल्टी लैंग्वेज सपोर्ट और ऑटो ट्रांसलेशन का फीचर मिलने लगा है। यह सुविधा उन लोगों के लिए बेहद उपयोगी है जो अपनी भाषा में ही बात करना चाहते हैं लेकिन दूसरी भाषाओं में भी अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं। लेकिन टेक्नोलॉजी की यही सुविधा कभी-कभी बहुत बड़ी गलतफहमी का कारण भी बन जाती है।
सीएम सिद्धारमैया के नाम पर हुई भारी चूक
हाल ही में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के साथ एक ऐसी ही चूक हुई जिसने सोशल मीडिया पर हड़कंप मचा दिया। फेसबुक और इंस्टाग्राम पर उनके ऑफिस की तरफ से एक्ट्रेस बी. सरोजा देवी की मृत्यु पर कन्नड़ भाषा में शोक संदेश लिखा गया। लेकिन मेटा का ऑटो ट्रांसलेशन टूल इस संदेश को गलत तरीके से अंग्रेजी में ट्रांसलेट कर गया। इस ट्रांसलेशन से ऐसा लग रहा था मानो खुद मुख्यमंत्री का निधन हो गया हो। यह गलती इतनी बड़ी थी कि मेटा कंपनी को खुद माफी मांगनी पड़ी।
भावनाओं का अनुवाद नहीं कर पाते टूल्स
सोशल मीडिया पर मौजूद ऑटो ट्रांसलेशन टूल्स अक्सर भावों और लोकभाषा को समझ नहीं पाते। खासकर जब बात मुहावरों या लोकोक्तियों की हो तो यह टूल्स शब्द का सीधा अनुवाद कर देते हैं लेकिन असली भाव खो जाता है। यही वजह है कि कई बार हंसने वाली बात रोने की लगती है या गंभीर बात मजाक बन जाती है। इससे न सिर्फ संदेश का अर्थ बदलता है बल्कि सामने वाले की भावनाएं भी आहत हो सकती हैं।
इन बातों का रखें खास ध्यान
अगर आप भी सोशल मीडिया पर ट्रांसलेशन टूल का इस्तेमाल करते हैं तो कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें। सबसे पहले तो किसी भी पोस्ट को ट्रांसलेट करने के बाद उसे दोबारा पढ़ें और उसके भाव को समझें। कोशिश करें कि अनौपचारिक भाषा या मुहावरों का उपयोग न करें। वर्ड-टू-वर्ड ट्रांसलेशन पर भरोसा न करें बल्कि हर लाइन के कॉन्टेक्स्ट को देखें कि उसका मतलब वही है जो आप कहना चाहते हैं या नहीं। जरूरी दस्तावेजों या संवेदनशील पोस्ट में इन टूल्स पर पूरी तरह भरोसा करना खतरनाक हो सकता है।
जिम्मेदारी के साथ करें ट्रांसलेशन का उपयोग
सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां एक छोटी सी गलती भी बड़ी कंट्रोवर्सी बन सकती है। इसलिए हर यूजर को ऑटो ट्रांसलेशन टूल्स का इस्तेमाल बेहद जिम्मेदारी से करना चाहिए। जब बात सार्वजनिक या संवेदनशील पोस्ट की हो तो बेहतर है कि खुद अनुवाद करें या फिर विशेषज्ञ की मदद लें। इस तरह न केवल गलतफहमी से बचा जा सकता है बल्कि सोशल मीडिया को एक सुरक्षित और समझदारी भरा मंच भी बनाया जा सकता है।
टेक्नॉलॉजी
iPhone 17 की लॉन्चिंग पर मंडराया खतरा! क्या डिस्प्ले विवाद ले डूबेगा Apple का प्लान?

अमेरिका की इंटरनेशनल ट्रेड कमीशन (ITC) ने बड़ा कदम उठाते हुए चीन में बने डिस्प्ले वाले iPhones की बिक्री पर बैन लगा दिया है। यह फैसला खास तौर पर उन iPhone मॉडल्स पर लागू होगा जिनमें चीनी कंपनी BOE का OLED डिस्प्ले इस्तेमाल हुआ है। यह प्रतिबंध केवल अमेरिकी बाजार में लागू किया गया है लेकिन इसका असर Apple की बिक्री और भविष्य की रणनीतियों पर गहराई से पड़ सकता है।
Samsung और BOE के बीच कानूनी लड़ाई की जड़ें
इस बैन के पीछे असली वजह सैमसंग और BOE के बीच चल रहा OLED टेक्नोलॉजी को लेकर विवाद है। सैमसंग ने आरोप लगाया है कि चीनी कंपनी BOE ने उनकी डिस्प्ले टेक्नोलॉजी चुराई है। यही नहीं इस मसले को लेकर अमेरिकी एजेंसियों तक को कोर्ट में जानकारी दी गई थी जिसके बाद ITC ने iPhone की बिक्री पर बैन लगाने का आदेश दिया।
किन iPhone मॉडल्स पर पड़ेगा असर
जानकारी के मुताबिक iPhone 15 और 15 Plus के साथ साथ आने वाले iPhone 16, 16 Plus और 16e मॉडल इस बैन की चपेट में आएंगे क्योंकि इनमें BOE के डिस्प्ले इस्तेमाल हुए हैं। इतना ही नहीं iPhone 17 सीरीज की सस्ती वेरिएंट में भी BOE के डिस्प्ले लगाए जाने की योजना थी। अब संभावना है कि iPhone 17 की लॉन्चिंग में देरी हो सकती है।
Apple ने दी सफाई
Apple ने बयान जारी कर कहा है कि वह इस कानूनी विवाद का हिस्सा नहीं है और इस बैन से उसकी प्रोडक्ट बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ेगा। Apple का दावा है कि उसने अपने लिए वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता तैयार किए हैं और वह नए डिस्प्ले स्रोतों से काम चला सकता है। हालांकि बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि iPhone की कुछ मॉडल्स की उपलब्धता में जरूर बाधा आ सकती है।
नवंबर तक का इंतजार और राष्ट्रपति की भूमिका
इस विवाद पर अंतिम फैसला नवंबर 2025 में आएगा। तब तक यह प्रतिबंध अस्थायी रूप से लागू रहेगा। अमेरिका के राष्ट्रपति चाहे तो ITC के इस फैसले पर वीटो लगा सकते हैं। ट्रंप प्रशासन इस मामले में हस्तक्षेप करेगा या नहीं यह देखना बाकी है। लेकिन तब तक Apple को अपने डिस्प्ले सप्लाई चेन को लेकर सजग रहना पड़ेगा।
टेक्नॉलॉजी
ChromeOS-Android Merge: Android और ChromeOS का मिलन तय, Google बना रहा भविष्य का सुपर प्लेटफॉर्म

ChromeOS-Android Merge: दुनिया की सबसे बड़ी सर्च इंजन कंपनी Google अब अपने दो प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम Android और ChromeOS को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की योजना बना रही है। इस बात की पुष्टि खुद गूगल के एंड्रॉइड प्रमुख समीर समत ने की है। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि गूगल अब लैपटॉप यूजर्स की जरूरतों और व्यवहार को भी ध्यान में रखकर एकीकृत प्लेटफॉर्म की दिशा में काम कर रहा है।
वर्षों पुरानी योजना अब बन रही हकीकत
इस एकीकरण को लेकर काफी समय से चर्चा चल रही थी। नवंबर 2024 में Android Authority ने रिपोर्ट किया था कि गूगल ChromeOS को Android के तकनीकी आधार पर ले जाने की तैयारी कर रहा है। अब गूगल ने इस योजना की पुष्टि कर दी है। इसका सीधा मकसद है कि Android और ChromeOS को मिलाकर Apple के iPad और iPadOS को सीधी टक्कर दी जा सके।
एंड्रॉइड में दिखने लगे ChromeOS जैसे फीचर्स
गूगल पहले ही Android में कई ऐसे फीचर्स शामिल कर चुका है जो अब तक केवल ChromeOS में मौजूद थे। इसमें डेस्कटॉप मोड, रिसाइज़ेबल विंडो सपोर्ट, बाहरी डिस्प्ले के लिए बेहतर सपोर्ट जैसे फीचर शामिल हैं। दूसरी ओर, ChromeOS पहले से ही Google Play Store के ज़रिए एंड्रॉइड ऐप्स को सपोर्ट करता है। दोनों सिस्टम के इस मिलन से गूगल की ऐप और हार्डवेयर इकोसिस्टम और भी मजबूत होगा।
क्यों हो रहा है यह बदलाव?
गूगल का मकसद साफ है – यूज़र्स को लैपटॉप और टैबलेट पर बेहतर अनुभव देना, फिचर डेवलपमेंट को तेज़ करना और अलग-अलग डिवाइस के लिए बार-बार अलग ऑपरेटिंग सिस्टम डेवलप करने से बचना। यह कदम न सिर्फ डेवलपर्स के लिए फायदेमंद होगा बल्कि आम यूज़र्स के लिए भी इंटरफेस और परफॉर्मेंस में सुधार लेकर आएगा। इससे गूगल का पूरा डिवाइस इकोसिस्टम एक ही प्लेटफॉर्म पर आ जाएगा।
पूरी तरह लागू होने में लग सकता है वक्त
हालांकि गूगल ने इस बात की आधिकारिक पुष्टि कर दी है, लेकिन इस नई तकनीकी बदलाव को पूरी तरह से लागू होने में कुछ साल लग सकते हैं। कंपनी का यह सपना कोई नया नहीं है, साल 2015 में पहली बार दोनों प्लेटफॉर्म को मर्ज करने की चर्चा हुई थी। अब जब गूगल ने इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है, तो आने वाले समय में एंड्रॉइड और ChromeOS के यूज़र्स को बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
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