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Rupee vs Dollar: यूएस हाई टैरिफ से पहले रुपया कमजोर, डॉलर के मुकाबले गिरावट

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Rupee vs Dollar: यूएस हाई टैरिफ से पहले रुपया कमजोर, डॉलर के मुकाबले गिरावट

Rupee vs Dollar: हफ्ते के दूसरे कारोबारी दिन मंगलवार को विदेशी मुद्रा बाजार खुलते ही डॉलर के मुकाबले रुपये में 22 पैसे की कमजोरी दर्ज की गई। रुपये का भाव 87.88 पर पहुंच गया। विदेशी मुद्रा कारोबारियों का कहना है कि अमेरिकी टैरिफ के लागू होने से पहले आयातकों की तरफ से डॉलर की मांग बढ़ गई है, जिससे रुपये पर और दबाव बना है।

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपये की शुरुआत 87.74 पर हुई, जो जल्दी ही 87.78 पर पहुंच गया। यह सोमवार के मुकाबले 22 पैसे की गिरावट दर्शाता है। सोमवार को रुपया 4 पैसे टूटकर 87.56 पर बंद हुआ था। विशेषज्ञों का कहना है कि डॉलर की मजबूत स्थिति और उच्च टैरिफ की संभावना ने निवेशकों को सतर्क कर दिया है।

रुपये में गिरावट की वजहें

डॉलर इंडेक्स, जो छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की स्थिति को दर्शाता है, 0.05 प्रतिशत घटकर 98.38 पर आ गया। इसके बावजूद डॉलर की मजबूती रुपये पर दबाव डाल रही है। अमेरिकी टैरिफ के अलावा अंतरराष्ट्रीय निवेशक भी सतर्क हो गए हैं और उन्होंने शेयर बाजार से पैसे निकालना शुरू कर दिया है।

हाई टैरिफ के प्रभाव से शेयर बाजार भी प्रभावित हुआ। बीएसई सेंसेक्स ने शुरुआती कारोबार में ही 546.87 अंक की गिरावट दर्ज की और 81,089.04 पर खुला। दिन के दौरान सेंसेक्स लगभग 660 अंक नीचे चला गया। एनएसई निफ्टी 50 भी 179.05 अंक टूटकर 24,788.70 पर बंद हुआ। बाजार में अधिकांश स्टॉक्स लाल निशान में कारोबार कर रहे थे।

Rupee vs Dollar: यूएस हाई टैरिफ से पहले रुपया कमजोर, डॉलर के मुकाबले गिरावट

Rupee vs Dollar: यूएस हाई टैरिफ से पहले रुपया कमजोर, डॉलर के मुकाबले गिरावट

विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली

विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भी अमेरिकी टैरिफ के डर से बिकवाली के मूड में रहे। सोमवार को उन्होंने 2,466.24 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। इस तरह की बिकवाली रुपये पर और दबाव डालती है और शेयर बाजार की कमजोरी को बढ़ावा देती है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य वित्तीय संकेत

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें भी गिरावट में रही। ब्रेंट क्रूड की कीमत 0.41 प्रतिशत घटकर 68.52 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई। तेल की कीमतों में गिरावट आमतौर पर रुपये को सहारा देती है, लेकिन अमेरिकी टैरिफ और डॉलर की मजबूती ने इस असर को कम कर दिया।

क्या कर सकते हैं निवेशक?

विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक बाजार की अनिश्चितता के समय निवेशक सतर्क रहें। शेयर बाजार में तेजी और गिरावट का असर सीधे रुपया और विदेशी निवेश पर पड़ता है। डॉलर की मजबूती और अमेरिकी टैरिफ के दबाव को देखते हुए निवेशकों को सावधानी से निर्णय लेना चाहिए।

अमेरिकी टैरिफ के नोटिस और डॉलर की मजबूती ने भारतीय रुपया और शेयर बाजार दोनों को प्रभावित किया है। रुपया 87.88 पर पहुंच गया और शेयर बाजार लाल निशान में कारोबार कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी टैरिफ लागू होने के बाद रुपये पर और दबाव बढ़ सकता है। निवेशकों और आयातकों को इस समय सतर्क रहना जरूरी है।

इस पूरी स्थिति में भारतीय करेंसी, शेयर बाजार और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकेतक लगातार निगरानी के दायरे में हैं। ऐसे समय में निवेशकों को बाजार की हर हलचल पर नजर रखना जरूरी है, ताकि वे अपनी वित्तीय रणनीति समय पर बदल सकें और संभावित जोखिम से बच सकें।

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Fall in the price of gold: 25 अगस्त 2025 को आपके शहर में क्या है ताजा रेट

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Fall in the price of gold: 25 अगस्त 2025 को आपके शहर में क्या है ताजा रेट

Fall in the price of gold: अमेरिकी केंद्रीय बैंक यूएस फेड की तरफ से रेट कटौती के संकेत मिलने के बाद जहां एशियाई और घरेलू बाजारों में तेजी देखी गई वहीं सोने की चमक फीकी पड़ गई। निवेशकों की दिलचस्पी सोने में कम होने से इसके दाम नीचे आ गए हैं। हफ्ते के पहले कारोबारी दिन सोमवार 25 अगस्त 2025 को सोने की कीमत में प्रति 10 ग्राम 57 रुपये की कमी दर्ज की गई। सुबह करीब साढ़े दस बजे एमसीएक्स पर सोना 1,00,327 रुपये प्रति 10 ग्राम के भाव से बिक रहा था जबकि एक दिन पहले यह 1,00,384 रुपये पर बंद हुआ था।

पिछले हफ्ते का हाल

इंडियन बुलियन एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार, शुक्रवार 22 अगस्त 2025 को 24 कैरेट सोना 99,360 रुपये प्रति 10 ग्राम पर  बंद हुआ था। यानी पिछले हफ्ते के मुकाबले इस हफ्ते सोने के भाव में मामूली उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। वहीं, चांदी की बात करें तो इसकी कीमत में भी गिरावट दर्ज की गई। एमसीएक्स पर सोमवार सुबह चांदी 1,16,002 रुपये प्रति किलो पर कारोबार कर रही थी, जो कि पिछले कारोबारी दिन के मुकाबले 234 रुपये कम थी। शुक्रवार को चांदी का भाव 1,12,690 रुपये प्रति किलो दर्ज किया गया था।

कीमत तय होने के कारण

सोने और चांदी की कीमतें रोजाना कई वैश्विक और घरेलू कारकों के आधार पर तय होती हैं। सबसे अहम भूमिका डॉलर और रुपये की विनिमय दर निभाती है। चूंकि सोने-चांदी का कारोबार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर में होता है, इसलिए अगर रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर पड़ता है तो भारत में सोना महंगा हो जाता है। इसके साथ ही आयात शुल्क, जीएसटी और अन्य टैक्स भी सोने की कीमतों को प्रभावित करते हैं।

Fall in the price of gold: 25 अगस्त 2025 को आपके शहर में क्या है ताजा रेट

Fall in the price of gold: 25 अगस्त 2025 को आपके शहर में क्या है ताजा रेट

भारत सोने का सबसे बड़ा आयातक देश है। ऐसे में आयात लागत में किसी भी तरह का बदलाव सीधे-सीधे सोने के दाम पर असर डालता है। वैश्विक परिस्थितियां जैसे युद्ध, आर्थिक मंदी, महंगाई दर या ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव भी सोने की मांग को बढ़ा या घटा देते हैं। जब निवेशक असुरक्षा महसूस करते हैं तो वे सोने को सुरक्षित विकल्प मानकर इसकी खरीदारी बढ़ा देते हैं, जिससे कीमत ऊपर चली जाती है।

निवेशकों की दिलचस्पी कम क्यों हुई?

हाल के दिनों में निवेशकों की दिलचस्पी सोने में कम हुई है। इसकी मुख्य वजह यह है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने रेट कटौती के संकेत दिए हैं। ब्याज दरों में कटौती का मतलब है कि निवेशक इक्विटी और अन्य बाजारों में ज्यादा रिटर्न की उम्मीद करते हैं और सोने से दूरी बना लेते हैं। यही कारण है कि एशियाई और घरेलू शेयर बाजारों में जबरदस्त तेजी आई जबकि सोने के दाम गिर गए।

भारत में सोने का महत्व

भारत में सोने को सिर्फ निवेश ही नहीं बल्कि परंपरा और संस्कृति से भी जोड़कर देखा जाता है। शादी-ब्याह, त्योहार और शुभ अवसरों पर सोना खरीदना शुभ माना जाता है। यही वजह है कि यहां सोने की मांग कभी खत्म नहीं होती। इसके अलावा सोने को महंगाई से बचाव का साधन भी माना जाता है। जब शेयर बाजार या अन्य निवेश विकल्प अस्थिर हो जाते हैं तब निवेशक सोने को सुरक्षित विकल्प मानते हैं। इसीलिए भारत में सोना हमेशा से लोगों की पहली पसंद रहा है।

25 अगस्त 2025 को सोने के भाव में गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, यह उतार-चढ़ाव बाजार की परिस्थितियों के हिसाब से सामान्य माना जाता है। डॉलर-रुपया विनिमय दर, अंतरराष्ट्रीय बाजार और घरेलू मांग आने वाले दिनों में सोने की कीमत को प्रभावित करेंगे। निवेशकों के लिए यह जरूरी है कि वे बाजार की स्थिति पर नजर रखकर ही सोने में निवेश का फैसला करें।

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GST Reforms: सोने की कीमत घटेगी या आम आदमी का बजट बिगड़ेगा?

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GST Reforms: सोने की कीमत घटेगी या आम आदमी का बजट बिगड़ेगा?

GST Reforms: भारत में सोना और चांदी न केवल निवेश का जरिया हैं, बल्कि यह हर घर की परंपरा और भावनाओं से जुड़ा हुआ है। त्योहारों और शादियों के सीजन में सोने की खरीदारी एक परंपरा बन चुकी है। ऐसे में सोने-चांदी की कीमतों पर टैक्स का सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ता है। इसी बीच सितंबर के पहले हफ्ते में होने वाली जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक से सोने और चांदी के कारोबारियों के साथ-साथ आम लोगों को भी बड़ी उम्मीदें हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश को संबोधित करते हुए जीएसटी स्ट्रक्चर में बड़े बदलावों का संकेत दिया था। सरकार ने साफ कर दिया है कि जल्द ही जीएसटी स्लैब्स को सरल किया जाएगा और नए ढांचे में केवल दो स्लैब – 5% और 18% ही होंगे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि सोने और चांदी पर जीएसटी घटेगा या बढ़ेगा?

मौजूदा समय में क्या है सोने पर टैक्स?

अभी सोने की खरीद पर 3 प्रतिशत की दर से जीएसटी वसूला जाता है। यानी यदि आप 50,000 रुपये का सोना खरीदते हैं, तो उस पर 1,500 रुपये जीएसटी देना पड़ता है। यह टैक्स सीधे ग्राहक की जेब पर असर डालता है और कुल कीमत बढ़ा देता है।

एक्सपर्ट्स का क्या मानना है?

टैक्स विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों का कहना है कि जीएसटी रिफॉर्म्स के तहत सोने पर लगने वाले टैक्स में 0.5% से 1% तक की कटौती हो सकती है। अगर यह होता है तो सोना कुछ हद तक सस्ता हो जाएगा और आम लोगों के लिए खरीदना आसान होगा।

उदाहरण के तौर पर, अगर जीएसटी 3% से घटाकर 2% कर दिया जाता है, तो 50,000 रुपये के सोने पर जीएसटी सिर्फ 1,000 रुपये देना होगा। यह सीधा फायदा ग्राहकों को मिलेगा और मांग बढ़ने की संभावना है।

GST Reforms: सोने की कीमत घटेगी या आम आदमी का बजट बिगड़ेगा?

GST Reforms: सोने की कीमत घटेगी या आम आदमी का बजट बिगड़ेगा?

कारोबारियों की आशंका

हालांकि, कारोबारियों में एक डर भी है। उन्हें आशंका है कि सरकार सोने पर जीएसटी घटाने के बजाय इसे बढ़ाकर 5% कर सकती है। अगर ऐसा हुआ, तो सोना खरीदना और महंगा हो जाएगा। 50,000 रुपये के सोने पर जीएसटी 2,500 रुपये देना पड़ेगा। ऐसे में आम आदमी का बजट गड़बड़ा जाएगा और त्योहारों के दौरान सोने की बिक्री पर असर पड़ सकता है।

चांदी पर भी पड़ेगा असर

जीएसटी स्ट्रक्चर में बदलाव का असर केवल सोने ही नहीं बल्कि चांदी की कीमतों पर भी पड़ेगा। अभी चांदी पर भी 3% जीएसटी लगता है। अगर इसमें कटौती होती है तो चांदी भी सस्ती होगी और ग्रामीण इलाकों में इसकी मांग बढ़ सकती है। वहीं टैक्स बढ़ने पर यह धातु भी महंगी हो जाएगी।

आम आदमी को कैसे मिलेगी राहत?

अगर जीएसटी घटता है तो त्योहारों और शादियों के सीजन में सोने-चांदी की खरीदारी आसान होगी। इससे न केवल आम उपभोक्ता को फायदा मिलेगा बल्कि ज्वेलरी कारोबार में भी रौनक लौटेगी। मांग बढ़ने से बाजार को मजबूती मिलेगी और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।

वहीं अगर टैक्स बढ़ाया गया, तो सोना महंगा होने से लोग नकली या अनऑर्गेनाइज्ड बाजारों की ओर रुख कर सकते हैं। इसका असर सरकार की जीएसटी से होने वाली कमाई पर भी पड़ सकता है।

क्यों जरूरी हैं जीएसटी रिफॉर्म्स?

भारत में लंबे समय से जीएसटी स्ट्रक्चर जटिल माना जा रहा है। कई स्लैब्स होने से उपभोक्ता और कारोबारियों दोनों के लिए असमंजस की स्थिति बनती है। अब सरकार इसे आसान बनाकर केवल दो स्लैब – 5% और 18% – रखने की तैयारी में है। इसका फायदा यह होगा कि टैक्स स्ट्रक्चर ज्यादा पारदर्शी और सरल होगा।

सोने और चांदी पर जीएसटी में कटौती से आम आदमी को राहत मिल सकती है और बाजार में मांग बढ़ सकती है। वहीं टैक्स बढ़ने से कीमतें और महंगी होंगी, जिससे लोगों का बजट गड़बड़ा सकता है। अब सबकी नजरें सितंबर में होने वाली 56वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक पर टिकी हैं। यह बैठक तय करेगी कि सोना-चांदी खरीदने वालों को इस फेस्टिव सीजन में राहत मिलेगी या उन्हें ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ेगी।

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Health Insurance: 1 सितंबर से बजाज आलियांज ग्राहकों के लिए बंद होगी कैशलेस इलाज की सुविधा

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Health Insurance: 1 सितंबर से बजाज आलियांज ग्राहकों के लिए बंद होगी कैशलेस इलाज की सुविधा

Health Insurance: अगर आपने अपनी फैमिली के लिए बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी से हेल्थ इंश्योरेंस लिया है, तो यह खबर आपके लिए बेहद अहम है। उत्तर भारत के अस्पतालों और स्वास्थ्य संस्थानों के एसोसिएशन एएचपीआई (Association of Healthcare Providers-India) ने अपने सदस्य अस्पतालों को निर्देश दिया है कि वे 1 सितंबर 2025 से बजाज आलियांज पॉलिसीहोल्डर्स के लिए कैशलेस इलाज की सुविधा बंद कर दें

यह फैसला सीधे उन हजारों लोगों को प्रभावित करेगा, जो बजाज आलियांज की पॉलिसी लेकर कैशलेस इलाज की उम्मीद करते हैं। हालांकि कंपनी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह हमेशा ग्राहकों को सर्वोत्तम अनुभव देने के लिए प्रतिबद्ध है और एएचपीआई के साथ मिलकर मामले का समाधान निकालने की कोशिश कर रही है।

एएचपीआई ने लगाए गंभीर आरोप

एएचपीआई, जो देशभर के करीब 15,200 अस्पतालों का प्रतिनिधित्व करता है, ने बजाज आलियांज पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। संस्था का कहना है कि बीमा कंपनी ने कई सालों पुराने कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर ही अस्पतालों को भुगतान दरें तय कर रखी हैं और बढ़ती चिकित्सा लागत को ध्यान में रखते हुए उन्हें संशोधित करने से इनकार कर रही है।

एएचपीआई के महानिदेशक गिरधर ग्यानी ने कहा कि हेल्थकेयर सेक्टर में हर साल लगभग 7-8% महंगाई बढ़ती है। दवाओं, मेडिकल उपकरणों, स्टाफ और इंफ्रास्ट्रक्चर की लागत लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पुराने रेट्स पर काम करना अब संभव नहीं है।

इसके अलावा एएचपीआई ने बजाज आलियांज पर यह भी आरोप लगाया है कि:

  • कंपनी इलाज के खर्च में मनमाने ढंग से कटौती करती है।

  • अस्पतालों को पेमेंट करने में काफी देरी होती है।

  • मरीजों के लिए जरूरी इलाज की पूर्व-अनुमति (Pre-authorization) देने में लंबा समय लगता है।

इन वजहों से अस्पतालों को न सिर्फ वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है बल्कि मरीजों की देखभाल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।

बजाज आलियांज की सफाई

बजाज आलियांज की ओर से इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कंपनी के स्वास्थ्य बीमा प्रमुख भास्कर नेरुरकर ने कहा,
“हमें पूरा भरोसा है कि हम एएचपीआई और उसके सदस्य अस्पतालों के साथ मिलकर इस मामले का समाधान निकाल लेंगे। हमारा हमेशा से उद्देश्य ग्राहकों को सर्वोत्तम सुविधाएं उपलब्ध कराना रहा है और आगे भी रहेगा।”

Health Insurance: 1 सितंबर से बजाज आलियांज ग्राहकों के लिए बंद होगी कैशलेस इलाज की सुविधा

Health Insurance: 1 सितंबर से बजाज आलियांज ग्राहकों के लिए बंद होगी कैशलेस इलाज की सुविधा

कंपनी ने यह भी कहा कि वह ग्राहकों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगी और कोशिश की जा रही है कि मरीजों को कैशलेस इलाज की सुविधा बिना बाधा मिले।

एएचपीआई का दूसरा कदम – केयर हेल्थ इंश्योरेंस को भी नोटिस

गौरतलब है कि एएचपीआई ने सिर्फ बजाज आलियांज ही नहीं बल्कि केयर हेल्थ इंश्योरेंस को भी इसी तरह का नोटिस भेजा है। 22 अगस्त को एएचपीआई ने केयर हेल्थ को पत्र लिखकर दरें संशोधित करने की मांग की थी और 31 अगस्त तक का समय दिया था। यदि जवाब नहीं मिला, तो 1 सितंबर से उसके पॉलिसीहोल्डर्स के लिए भी कैशलेस इलाज की सुविधा बंद की जा सकती है।

मरीजों और पॉलिसीहोल्डर्स पर असर

एएचपीआई के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर उन मरीजों पर पड़ेगा, जो बजाज आलियांज की हेल्थ पॉलिसी पर निर्भर हैं। अब उन्हें इलाज के समय सीधे भुगतान करना पड़ सकता है और बाद में क्लेम प्रोसेस के जरिए रिइम्बर्समेंट लेना होगा। इससे:

  • इमरजेंसी मरीजों के लिए परेशानी बढ़ सकती है।

  • आम लोगों की जेब पर अचानक बोझ पड़ सकता है।

  • इलाज में देरी की स्थिति भी पैदा हो सकती है।

एएचपीआई और बजाज आलियांज के बीच यह विवाद हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर में मौजूद असंतुलन को उजागर करता है। एक ओर अस्पताल बढ़ती लागत का हवाला देकर दरें बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर बीमा कंपनियां अपने ग्राहकों के प्रीमियम को नियंत्रित रखना चाहती हैं।

अब देखना यह होगा कि 1 सितंबर से पहले दोनों पक्षों के बीच कोई समाधान निकल पाता है या नहीं। अगर समझौता नहीं हुआ, तो हजारों पॉलिसीहोल्डर्स को कैशलेस इलाज की सुविधा से हाथ धोना पड़ सकता है।

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