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लोकसभा अध्यक्ष Om Birla ने बताया, “मैं शाकाहारी हूं, मच्छी नहीं खाता”

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लोकसभा अध्यक्ष Om Birla ने बताया, "मैं शाकाहारी हूं, मच्छी नहीं खाता"

Speaker Om Birla: लोकसभा में मंगलवार को प्रश्नकाल के दौरान बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रुई को जवाब देते हुए लोकसभा अध्यक्ष Om Birla ने कहा कि वह मच्छी नहीं खाते और शाकाहारी हैं। यह बयान उस वक्त आया, जब रुई ने मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय से संबंधित एक सवाल पूछा। इस दौरान, रुई ने यह टिप्पणी की कि देश में 95 करोड़ लोग मच्छी खाते हैं और एक करोड़ लोग मच्छी उत्पादन करते हैं। इसके जवाब में बिरला ने यह स्पष्ट किया कि वह मच्छी नहीं खाते और उनका आहार पूरी तरह से शाकाहारी है।

रुई के सवाल का जवाब देते हुए ओम बिरला ने क्या कहा?

बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रुई ने एक सवाल पूछा था कि देश में मच्छी का उत्पादन कैसे बढ़ा है और इसके साथ ही यह भी कहा कि 95 करोड़ लोग मच्छी खाते हैं और एक करोड़ लोग मच्छी उत्पादन से जुड़े हैं। उन्होंने यह भी सवाल किया, “Speaker ji, मुझे नहीं पता कि आप मच्छी खाते हैं या नहीं?” इस पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दिया, “मैं मच्छी नहीं खाता। मैं शाकाहारी हूं।” यह जवाब सदन में हंसी का कारण बन गया और सदन में उपस्थित सभी सांसदों ने इसे सहर्ष सुना।

मछली उत्पादन में 100 प्रतिशत वृद्धि: केंद्रीय मंत्री का बयान

राजीव प्रताप रुई के सवाल के जवाब में, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद पिछले एक दशक में मच्छी उत्पादन में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। मंत्री ने यह भी कहा कि यह वृद्धि मच्छी उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार के कारण हुई है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सरकार ने मत्स्य पालन क्षेत्र में कई योजनाओं की शुरुआत की है, जिनके कारण मच्छी उत्पादन में यह वृद्धि संभव हो पाई।

लोकसभा अध्यक्ष Om Birla ने बताया, "मैं शाकाहारी हूं, मच्छी नहीं खाता"

तृणमूल कांग्रेस के सांसद का सवाल

इस सवाल पर तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद कल्याण बनर्जी ने भी एक सवाल पूछा। उन्होंने कहा कि जब राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मंत्री नहीं थे, तब वह अक्सर पूछते थे कि उन्हें इलिश (मच्छी की एक किस्म) कब खिलाई जाएगी। इस सवाल पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने त्वरित प्रतिक्रिया दी और कहा कि सांसद को सवालों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बिरला के इस जवाब पर भी सदन में कुछ समय के लिए हल्की हंसी का माहौल बना।

मछली उत्पादन और भारत की कृषि नीति

भारत में मच्छी उत्पादन का इतिहास बहुत पुराना है और यह कृषि क्षेत्र का एक अहम हिस्सा है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने मत्स्य पालन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है, जिससे मच्छी उत्पादन में वृद्धि हुई है। मच्छी उत्पादन न केवल देश की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह लाखों किसानों और मछुआरों के लिए आजीविका का साधन भी है। इसके अलावा, मच्छी का व्यापार भी देश के आर्थिक विकास में योगदान देता है।

मत्स्य पालन और शाकाहार

जब बात शाकाहारी आहार की होती है, तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के शाकाहारी होने का मामला सामने आता है। बिरला का शाकाहारी होना भारतीय राजनीति में एक चर्चित विषय है, क्योंकि वह इस बारे में सार्वजनिक रूप से बोलते रहे हैं। उनका यह बयान, “मैं मच्छी नहीं खाता, मैं शाकाहारी हूं,” उनकी जीवनशैली का प्रतीक है, जो उन्हें अपने समर्थकों के बीच एक स्वस्थ और नैतिक जीवनशैली के प्रतीक के रूप में स्थापित करता है।

लोकसभा अध्यक्ष का सख्त रुख

हालांकि, जब कल्याण बनर्जी ने सवाल उठाया कि ललन सिंह इलिश मच्छी कब खाएंगे, तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपनी अनुशासनप्रियता दिखाते हुए सांसद को ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी। बिरला ने यह भी कहा कि सदन में केवल जरूरी मुद्दों पर ही चर्चा होनी चाहिए, और व्यक्तिगत टिप्पणियों से बचना चाहिए। यह एक संकेत था कि वह सदन में किसी भी प्रकार के अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं करेंगे।

लोकसभा में मंगलवार का प्रश्नकाल हंसी-मजाक और हल्की-फुल्की चर्चाओं का कारण बना, लेकिन इसके साथ ही यह चर्चा गंभीर मुद्दों पर भी केंद्रित रही। ओम बिरला का यह बयान कि वह शाकाहारी हैं और मच्छी नहीं खाते, एक दिलचस्प और हल्के-फुल्के पल के रूप में सामने आया। वहीं, केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह द्वारा मच्छी उत्पादन में 100 प्रतिशत वृद्धि की जानकारी ने भी सदन में सकारात्मक चर्चाओं का माहौल तैयार किया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मत्स्य पालन क्षेत्र में आगे कौन सी नई योजनाएं और सुधार किए जाते हैं, जो मच्छी उत्पादन और इस उद्योग से जुड़े लोगों की मदद करेंगे।

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Odisha: बर्तन में फंसा मासूम का सिर, दमकल कर्मियों ने दो घंटे की मशक्कत से बचाई जान

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Odisha: बर्तन में फंसा मासूम का सिर, दमकल कर्मियों ने दो घंटे की मशक्कत से बचाई जान

Odisha के मलकानगिरी जिले से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। यहां तीन साल का एक बच्चा खेलते-खेलते गंभीर मुसीबत में फंस गया। यह घटना कोरुकोंडा गांव की है जहां छोटे तनमय नाम के बच्चे ने खेलते वक्त अपना सिर एक नए स्टील के बर्तन में डाल लिया। सिर अंदर तो चला गया लेकिन बाहर निकालते वक्त बर्तन में फंस गया।

माता-पिता की घबराहट और तत्काल कदम

बच्चा जब रोने लगा तो उसके माता-पिता घबरा गए। उन्होंने खुद से बर्तन निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। घबराए हुए पिता उसे तुरंत कोरुकोंडा फायर स्टेशन लेकर पहुंचे। वहां हालात की गंभीरता को देखते हुए फायर ब्रिगेड टीम ने तुरंत बच्चे को मलकानगिरी मुख्य फायर स्टेशन भेजा ताकि विशेष उपकरणों से राहत कार्य किया जा सके।

Odisha: बर्तन में फंसा मासूम का सिर, दमकल कर्मियों ने दो घंटे की मशक्कत से बचाई जान

फायर ब्रिगेड का रेस्क्यू ऑपरेशन

मलकानगिरी फायर स्टेशन में एक विशेष टीम बनाई गई और ऑपरेशन शुरू किया गया। बर्तन को काटने के लिए विशेष कटर का इस्तेमाल किया गया। पूरे दो घंटे की मेहनत के बाद दमकल कर्मियों ने बेहद सावधानी से बर्तन को काटा और बच्चे का सिर सुरक्षित बाहर निकाला। राहत की बात यह रही कि तनमय को कोई गंभीर चोट नहीं आई और वह पूरी तरह सुरक्षित है।

समय पर मदद ने बचाई जान

इस हादसे ने एक बार फिर साबित कर दिया कि समय पर उठाया गया कदम और सतर्कता कितनी ज़रूरी होती है। यदि फायर ब्रिगेड की टीम समय पर नहीं पहुंचती या अगर सावधानी नहीं बरती जाती तो यह हादसा बड़ी दुर्घटना में बदल सकता था। गांव वालों ने फायर कर्मियों की तत्परता और सूझबूझ की जमकर तारीफ की।

माता-पिता को दी गई चेतावनी

इस घटना के बाद फायर ब्रिगेड अधिकारियों ने सभी माता-पिता से अपील की है कि वे छोटे बच्चों को घर में मौजूद नए और असामान्य वस्तुओं से खेलने न दें। अक्सर मासूमियत में बच्चे ऐसी चीजें कर बैठते हैं जो जानलेवा साबित हो सकती हैं। थोड़ी सी सतर्कता बड़े हादसों से बचा सकती है।

 

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Kerala: बारिश ने मचाई तबाही! रातों-रात केरल के कई शहरों में पेड़ उखड़े और बिजली गुल

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Kerala: बारिश ने मचाई तबाही! रातों-रात केरल के कई शहरों में पेड़ उखड़े और बिजली गुल

Kerala में शुक्रवार रात से हो रही मूसलाधार बारिश ने जनजीवन को पूरी तरह से अस्तव्यस्त कर दिया है। कई जिलों में जलभराव की स्थिति बन गई है। मौसम विभाग ने राज्य के सात जिलों में ऑरेंज अलर्ट जारी कर दिया है। अलर्ट वाले जिलों में अलप्पुझा, कोट्टायम, इडुक्की, एर्नाकुलम, त्रिशूर, मलप्पुरम और कोझिकोड शामिल हैं। ऑरेंज अलर्ट का मतलब है कि यहां 11 से 20 सेंटीमीटर तक की बहुत भारी बारिश हो सकती है।

कोझिकोड और कन्नूर में तबाही

कोझिकोड जिले में तेज हवा के साथ भारी बारिश ने रातों-रात कहर बरपा दिया। कई जगह पेड़ गिर गए जिससे बिजली के तार टूट गए और बिजली आपूर्ति ठप हो गई। घरों और गाड़ियों को भी नुकसान हुआ है। कन्नूर जिले से भी ऐसी ही घटनाएं सामने आई हैं। यहां एक दुखद घटना में 78 वर्षीय बुजुर्ग की मौत हो गई जब एक पेड़ उनके घर पर गिर पड़ा।

बांधों के दरवाजे खोले गए

तेज बारिश के चलते राज्य के बांधों में भी जलस्तर बढ़ गया है। वायनाड स्थित बाणासुरा सागर और पलक्कड़ जिले के अलीयार डैम के गेट खोल दिए गए हैं। प्रशासन ने निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को सतर्क रहने के निर्देश दिए हैं। डैम से पानी छोड़े जाने की वजह से बाढ़ का खतरा और बढ़ गया है।

 मलप्पुरम में भी हालात बिगड़े

मलप्पुरम जिले में भी भारी बारिश और तेज हवाओं की वजह से कई जगहों पर पेड़ उखड़ गए। सड़कों पर गिरे पेड़ों की वजह से यातायात बाधित हो गया है। सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें सड़कों पर पेड़ गिरे हुए देखे जा सकते हैं। लोगों को घरों से बाहर निकलने में भी परेशानी हो रही है।

अगले पांच दिन और मुसीबत

भारतीय मौसम विभाग और केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने चेतावनी दी है कि यह बारिश 29 जुलाई तक इसी तरह जारी रह सकती है। इसके पीछे महाराष्ट्र से लेकर केरल तट तक बने कम दबाव के क्षेत्र को जिम्मेदार माना जा रहा है। आने वाले दिनों में हवा की रफ्तार 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है जिससे नुकसान की आशंका और बढ़ गई है।

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केंद्रीय विश्वविद्यालयों में खाली पदों पर Rahul Gandhi का हमला! यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि साजिश है

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केंद्रीय विश्वविद्यालयों में खाली पदों पर Rahul Gandhi का हमला! यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि साजिश है

Rahul Gandhi: हाल ही में संसद में पेश किए गए आंकड़ों ने चौंकाने वाला सच सामने लाया है। देश के अधिकतर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के पद बड़ी संख्या में खाली हैं। खासकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षित पदों में 60 से 80 प्रतिशत तक की भारी कमी है। यह सिर्फ शिक्षा की गिरती हालत नहीं बल्कि गहरी सामाजिक चिंता का विषय बन चुका है।

राहुल गांधी का तीखा हमला

राहुल गांधी ने इन आंकड़ों को लेकर केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं बल्कि बहुजनों को शिक्षा और शोध से दूर रखने की एक ‘सोची-समझी साजिश’ है। उनका कहना है कि सरकार की मंशा है कि बहुजन समाज उच्च शिक्षा और नीति निर्माण से बाहर ही रहे ताकि उनकी आवाज कहीं न सुनी जाए।

‘एनएफएस’ के नाम पर हो रहा अन्याय

राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार योग्य उम्मीदवारों को ‘एनएफएस’ यानी ‘नॉट फाउंड स्युटेबल’ कहकर बाहर कर रही है। एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के हजारों योग्य अभ्यर्थियों को अयोग्य बताकर उनके हक छीने जा रहे हैं। उन्होंने इसे ‘संस्थागत मनुवाद’ करार देते हुए कहा कि यह सोच आज भी जीवित है और व्यवस्था में गहराई तक समाई हुई है।

बहुजनों की अनुपस्थिति से शोध में भी पक्षपात

राहुल गांधी ने इस बात पर चिंता जताई कि बहुजनों की शिक्षा और विश्वविद्यालयों में सहभागिता कम होने से उनकी समस्याएं शोध और विमर्श से भी गायब हो रही हैं। जब विश्वविद्यालयों में ही उनके प्रतिनिधि नहीं होंगे तो उनकी जरूरतों और अधिकारों पर कौन बात करेगा। यह समाज के एक बड़े हिस्से को साइलेंट बना देने की प्रक्रिया है।

बहुजनों को मिलना चाहिए उनका अधिकार

राहुल गांधी ने सरकार से मांग की है कि सभी खाली पदों को तुरंत भरा जाए। उन्होंने कहा कि यह एक बड़ी सामाजिक ज़िम्मेदारी है जिसे अब और नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। बहुजनों को उनका हक मिलना चाहिए न कि मनुवादी सोच के तहत बहिष्करण। शिक्षा में समान अवसर देना ही सच्चा लोकतंत्र होगा।

 

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