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World Book Fair: आचार्य बालकृष्ण ने बताया आयुर्वेद के वैश्विक प्रचार की आवश्यकता

World Book Fair: नई दिल्ली के भारत मंडपम, प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में पतंजलि योगपीठ के महासचिव आचार्य बालकृष्ण ने मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया। यह मेला राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत (भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत) द्वारा आयोजित किया गया था। इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन लोगों के लाभ के लिए होते हैं, जहां विश्व स्तर पर ज्ञान आधारित साहित्य उपलब्ध होता है।
योग और आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित किया
आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि पतंजलि ने योग और आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दी है। उन्होंने योग के बारे में बात करते हुए कहा कि यह गर्व की बात है कि आज योग को पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है। उन्होंने यह उदाहरण दिया कि यदि पूरी दुनिया में विभिन्न भाषाओं में एक ही शब्द का समान अर्थ समझा जाता है, तो वह योग है। योग का यह वैश्विक स्वीकार्यता भारतीय संस्कृति और शिक्षा की सफलता का प्रतीक है।
आयुर्वेद एक संपूर्ण विज्ञान है
आचार्य बालकृष्ण ने आयुर्वेद के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद एक संपूर्ण विज्ञान है और यह किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं करता। उनका यह भी कहना था कि आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में जो काम वैश्विक स्तर पर किया जाना चाहिए था, वह नहीं हो पाया है। हालांकि, आयुर्वेद आज हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है और यह किसी के द्वारा सिखाया या प्रचारित नहीं किया गया, बल्कि यह हमारे प्राचीन ज्ञान का हिस्सा है।
आचार्य ने उदाहरण देते हुए बताया कि एलोपैथी, जो एक सिंथेटिक चिकित्सा प्रणाली है, आज हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी है, जबकि आयुर्वेद प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में से एक है। आयुर्वेद जीवन को प्रकृति के अनुसार जीने की शिक्षा देता है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद का सही उपयोग और प्रचार-प्रसार जरूरी है, ताकि इसे अधिक से अधिक लोग समझ सकें और इसका लाभ उठा सकें।
पतंजलि ने आयुर्वेद और योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित किया
आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि पतंजलि ने योग और आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पतंजलि ने ‘वर्ल्ड हर्बल एन्शाइकलोपीडिया’ नामक एक शानदार पुस्तक प्रकाशित की है, जिसमें 32 हजार औषधीय पौधों का विस्तृत विवरण है। पहले केवल 12 हजार औषधीय पौधों की जानकारी थी। इस पुस्तक के माध्यम से पतंजलि ने आयुर्वेद को एक नई दिशा दी है।
इसके अलावा, पतंजलि ने ‘सौमित्रेयनिदानम्’ नामक आयुर्वेद आधारित पुस्तक भी प्रकाशित की है, जिसमें नई बीमारियों, विकारों और रोगों का चित्रण किया गया है। इस पुस्तक में 6821 श्लोकों के माध्यम से 471 मुख्य रोगों सहित 500 से अधिक रोगों का विवरण दिया गया है। यह पुस्तक आयुर्वेद के परंपरागत उपचार विधियों के साथ नई बीमारियों और उनके उपचार के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
देश को व्यापार नहीं, परिवार मानते हैं आचार्य बालकृष्ण
आचार्य बालकृष्ण ने पतंजलि के स्वदेशी उत्पादों के बारे में बात करते हुए कहा कि पतंजलि उत्पाद इस दृष्टिकोण से बनाए जाते हैं कि हमारे परिवार के सदस्य उन्हें उपयोग करें। यही कारण है कि हमारे उत्पाद गुणवत्ता और शुद्धता के सभी मापदंडों पर खरे उतरते हैं। उन्होंने सभी निर्माण कंपनियों से अपील की कि वे अपने उत्पादों को इस तरह से बनाएँ कि उनके परिवार को इसमें कोई भी हानि न हो।
आचार्य ने यह भी कहा कि हमारे लिए देश एक व्यापार नहीं, बल्कि एक परिवार है। इस दृष्टिकोण से देश की सेवा करना हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
युवाओं को प्रेरणा दी
आचार्य बालकृष्ण ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि जो भी काम आप अपने लिए या देश के लिए कर रहे हैं, उसे केवल आज के लिए न करें, बल्कि यह सोचें कि भविष्य में आप उस काम से किस तरह लाभ उठा सकते हैं। यह दृष्टिकोण उन्हें अपने कार्यों में सार्थकता और दूरदर्शिता लाने के लिए प्रेरित करता है।
पतंजलि के माध्यम से प्रकाशित पुस्तकें
आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि पतंजलि ने योग, आयुर्वेद, शिक्षा, चिकित्सा, शोध, प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों और प्रेरणादायक आध्यात्मिक पुस्तकों पर कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इसके साथ ही, भारतीय शिक्षा बोर्ड के तहत स्वदेशी शिक्षा प्रणाली की नींव रखी जा रही है। कक्षा 1 से कक्षा 10 तक का पाठ्यक्रम भी प्रकाशित किया जा रहा है, जो भारतीय शिक्षा प्रणाली के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
आचार्य बालकृष्ण का यह संबोधन न केवल योग और आयुर्वेद की वैश्विक पहचान की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है, बल्कि यह युवाओं और उद्योगपतियों को प्रेरित करता है कि वे अपने कार्यों में आत्मनिर्भरता और गुणवत्ता को प्राथमिकता दें। पतंजलि द्वारा आयुर्वेद और योग के प्रचार में किए गए प्रयासों ने भारतीय संस्कृति और विज्ञान को एक नई दिशा दी है। उनके कार्यों से यह स्पष्ट होता है कि पतंजलि न केवल एक व्यवसाय है, बल्कि एक मिशन है जो भारतीय जीवनशैली और स्वास्थ्य प्रणाली को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत कर रहा है।
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Chandrayaan-5: भारत का नया चंद्र मिशन, जापान के साथ होगा सहयोग

Chandrayaan-5: भारत सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चंद्रयान-5 मिशन (Chandrayaan-5 Mission) को मंजूरी दे दी है। यह भारत का महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन होगा, जिसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह का गहराई से अध्ययन करना है। ISRO के अध्यक्ष वी. नारायणन (V. Narayanan) ने रविवार को इस बारे में जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि चंद्रयान-5 मिशन को जापान के साथ मिलकर पूरा किया जाएगा। इस मिशन के तहत 250 किलोग्राम वजनी रोवर (Rover) चंद्रमा की सतह पर भेजा जाएगा, जिससे वहां की संरचना और विशेषताओं का अध्ययन किया जा सके।
चंद्रयान-4 की लॉन्चिंग कब होगी?
ISRO प्रमुख वी. नारायणन ने जानकारी दी कि भारत का चंद्रयान-4 मिशन साल 2027 में लॉन्च किया जाएगा। यह मिशन चंद्रमा की सतह से नमूने (Samples) इकट्ठा कर धरती पर वापस लाने के लिए तैयार किया गया है।
ISRO प्रमुख के अनुसार, चंद्रयान मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह का गहराई से विश्लेषण करना है, जिससे अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की भूमिका और सशक्त हो सके।
चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता
भारत का चंद्रयान-3 मिशन (Chandrayaan-3 Mission) 2023 में ऐतिहासिक सफलता के रूप में दर्ज हुआ। इस मिशन में 25 किलोग्राम वजनी ‘प्रज्ञान’ रोवर (Pragyan Rover) चंद्रमा की सतह पर भेजा गया था।
23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 के लैंडर ‘विक्रम’ (Vikram Lander) ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव (South Pole of Moon) पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग (Soft Landing) की थी। यह मिशन भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में नई ऊंचाइयों तक ले गया और दुनिया भर में इसकी सराहना हुई।
चंद्रयान-5: क्या होगा खास?
चंद्रयान-5 मिशन की खासियत इस प्रकार होगी:
- 250 किलोग्राम वजनी रोवर चंद्रमा की सतह का गहन अध्ययन करेगा।
- भारत और जापान का संयुक्त प्रयास होगा, जिससे दोनों देशों की तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ मिलेगा।
- चंद्रयान-4 के बाद इस मिशन से भारत की चंद्र अन्वेषण क्षमता और मजबूत होगी।
- यह भविष्य के मून मिशनों की नींव रखेगा, जिसमें इंसानों को चंद्रमा पर भेजने की संभावनाएं तलाशी जाएंगी।
चंद्रयान मिशन: भारत का चंद्र अन्वेषण इतिहास
भारत का चंद्रयान मिशन (Chandrayaan Mission) हमेशा से चंद्रमा के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण रहा है। अब तक भारत ने तीन चंद्र मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च किए हैं:
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चंद्रयान-1 (2008):
- यह भारत का पहला चंद्र मिशन था।
- चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया गया था।
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चंद्रयान-2 (2019):
- इस मिशन में लैंडर विक्रम सफलतापूर्वक लैंड नहीं कर पाया, लेकिन ऑर्बिटर अब भी काम कर रहा है।
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चंद्रयान-3 (2023):
- भारत पहला देश बना, जिसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग की।
- इस मिशन में प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर अध्ययन किया।
अब चंद्रयान-4 और चंद्रयान-5 मिशन भारत के अंतरिक्ष विज्ञान को और मजबूत करेंगे।
भारत का बढ़ता अंतरिक्ष अनुसंधान
ISRO लगातार नए अंतरिक्ष अभियानों पर काम कर रहा है। चंद्रयान-5 के साथ-साथ भारत गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission) पर भी काम कर रहा है, जो पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन होगा।
इसके अलावा, ISRO अदित्य L1 मिशन (Aditya L1 Mission) और मंगलयान-2 (Mangalyaan-2) की भी तैयारी कर रहा है। इससे भारत की अंतरिक्ष विज्ञान में वैश्विक उपस्थिति और मजबूत होगी।
भारत के चंद्रयान-5 मिशन को मंजूरी मिलना देश के अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए एक बड़ा कदम है। यह मिशन चंद्रमा की सतह पर महत्वपूर्ण खोज करेगा और भारत-जापान के वैज्ञानिक संबंधों को भी मजबूत करेगा।
चंद्रयान-4 और चंद्रयान-5 मिशन भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में और ऊंचाई तक ले जाएंगे। आने वाले वर्षों में भारत की अंतरिक्ष शक्ति और अधिक बढ़ेगी और ISRO नए कीर्तिमान स्थापित करेगा।
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