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Petrol-Diesel Price: डीजल में 60 पैसे की गिरावट सिर्फ पटना में, बाकी राज्यों में क्यों स्थिरता?

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Petrol-Diesel Price: डीजल में 60 पैसे की गिरावट सिर्फ पटना में, बाकी राज्यों में क्यों स्थिरता?

Petrol-Diesel Price: कोलकाता में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हल्की बढ़ोतरी हुई है। ऑयल मार्केटिंग कंपनियों द्वारा फ्यूल के बेसिक प्राइस को फिर से एडजस्ट करने के बाद यह बदलाव सामने आया है। अब कोलकाता में पेट्रोल की कीमत ₹105.41 प्रति लीटर हो गई है जबकि डीजल की कीमत ₹92.02 प्रति लीटर पहुंच गई है। एक प्रमुख ऑयल कंपनी के अधिकारी ने बताया कि पेट्रोल की कीमत में 40 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई है जबकि डीजल की कीमत में 20 पैसे प्रति लीटर का इजाफा हुआ है। हालांकि इसके उलट बिहार की राजधानी पटना में डीजल के दाम में 60 पैसे प्रति लीटर की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं अन्य पूर्वी राज्यों में ईंधन की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं।

क्यों होता है ईंधन की कीमतों में बदलाव

ईंधन की कीमतें तय करने का आधार उसका बेसिक प्राइस होता है जिसे ऑयल मार्केटिंग कंपनियां समय-समय पर रिव्यू करती हैं। इसमें ऑपरेशनल खर्च और लॉजिस्टिक्स जैसे कई फैक्टरों को ध्यान में रखते हुए एडजस्टमेंट किया जाता है। इस बेसिक प्राइस में केंद्र और राज्य सरकारों के टैक्स जुड़ने के बाद रिटेल प्राइस बनता है जो आम उपभोक्ता को चुकाना पड़ता है। हाल ही में हुए इस मामूली बदलाव ने सीधे तौर पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों को प्रभावित किया है। इन बदलावों का असर चाहे कम हो लेकिन जब हर लीटर पर कुछ पैसे बढ़ते हैं तो उसका असर लाखों लोगों की जेब पर पड़ता है।

Petrol-Diesel Price: डीजल में 60 पैसे की गिरावट सिर्फ पटना में, बाकी राज्यों में क्यों स्थिरता?

पटना में राहत, बाकी राज्यों में स्थिरता

जहां एक तरफ कोलकाता में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े हैं वहीं पटना के लोगों को थोड़ी राहत मिली है। वहां डीजल के दाम में 60 पैसे प्रति लीटर की गिरावट आई है। हालांकि पेट्रोल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसके अलावा झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल के अन्य हिस्सों और असम जैसे पूर्वी राज्यों में कीमतें जस की तस बनी हुई हैं। इससे साफ है कि कंपनियां केवल उन्हीं शहरों में दाम बदल रही हैं जहां लॉजिस्टिक्स या वितरण से जुड़ी लागत में बदलाव हुआ है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव स्थिर

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बीते कुछ समय से स्थिर बनी हुई हैं। इसी वजह से भारत में तेल कंपनियों को कीमतों में बड़ी बढ़ोतरी करने की ज़रूरत नहीं पड़ी। मंगलवार दोपहर को डब्ल्यूटीआई क्रूड ऑयल की कीमत $62.05 प्रति बैरल रही जिसमें 0.15 प्रतिशत या $0.11 की मामूली बढ़त देखी गई। वहीं ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत $65.02 प्रति बैरल रही जिसमें 0.09 प्रतिशत या $0.06 की बढ़त हुई। इन स्थिर कीमतों से संकेत मिलता है कि अभी पेट्रोल-डीजल की दरों में बड़ा उछाल आने की संभावना कम है। हालांकि लोकल लेवल पर बेस प्राइस के रीएडजस्टमेंट से छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव होते रहेंगे।

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Health Insurance: 1 सितंबर से बजाज आलियांज ग्राहकों के लिए बंद होगी कैशलेस इलाज की सुविधा

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Health Insurance: 1 सितंबर से बजाज आलियांज ग्राहकों के लिए बंद होगी कैशलेस इलाज की सुविधा

Health Insurance: अगर आपने अपनी फैमिली के लिए बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी से हेल्थ इंश्योरेंस लिया है, तो यह खबर आपके लिए बेहद अहम है। उत्तर भारत के अस्पतालों और स्वास्थ्य संस्थानों के एसोसिएशन एएचपीआई (Association of Healthcare Providers-India) ने अपने सदस्य अस्पतालों को निर्देश दिया है कि वे 1 सितंबर 2025 से बजाज आलियांज पॉलिसीहोल्डर्स के लिए कैशलेस इलाज की सुविधा बंद कर दें

यह फैसला सीधे उन हजारों लोगों को प्रभावित करेगा, जो बजाज आलियांज की पॉलिसी लेकर कैशलेस इलाज की उम्मीद करते हैं। हालांकि कंपनी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह हमेशा ग्राहकों को सर्वोत्तम अनुभव देने के लिए प्रतिबद्ध है और एएचपीआई के साथ मिलकर मामले का समाधान निकालने की कोशिश कर रही है।

एएचपीआई ने लगाए गंभीर आरोप

एएचपीआई, जो देशभर के करीब 15,200 अस्पतालों का प्रतिनिधित्व करता है, ने बजाज आलियांज पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। संस्था का कहना है कि बीमा कंपनी ने कई सालों पुराने कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर ही अस्पतालों को भुगतान दरें तय कर रखी हैं और बढ़ती चिकित्सा लागत को ध्यान में रखते हुए उन्हें संशोधित करने से इनकार कर रही है।

एएचपीआई के महानिदेशक गिरधर ग्यानी ने कहा कि हेल्थकेयर सेक्टर में हर साल लगभग 7-8% महंगाई बढ़ती है। दवाओं, मेडिकल उपकरणों, स्टाफ और इंफ्रास्ट्रक्चर की लागत लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पुराने रेट्स पर काम करना अब संभव नहीं है।

इसके अलावा एएचपीआई ने बजाज आलियांज पर यह भी आरोप लगाया है कि:

  • कंपनी इलाज के खर्च में मनमाने ढंग से कटौती करती है।

  • अस्पतालों को पेमेंट करने में काफी देरी होती है।

  • मरीजों के लिए जरूरी इलाज की पूर्व-अनुमति (Pre-authorization) देने में लंबा समय लगता है।

इन वजहों से अस्पतालों को न सिर्फ वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है बल्कि मरीजों की देखभाल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।

बजाज आलियांज की सफाई

बजाज आलियांज की ओर से इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कंपनी के स्वास्थ्य बीमा प्रमुख भास्कर नेरुरकर ने कहा,
“हमें पूरा भरोसा है कि हम एएचपीआई और उसके सदस्य अस्पतालों के साथ मिलकर इस मामले का समाधान निकाल लेंगे। हमारा हमेशा से उद्देश्य ग्राहकों को सर्वोत्तम सुविधाएं उपलब्ध कराना रहा है और आगे भी रहेगा।”

Health Insurance: 1 सितंबर से बजाज आलियांज ग्राहकों के लिए बंद होगी कैशलेस इलाज की सुविधा

Health Insurance: 1 सितंबर से बजाज आलियांज ग्राहकों के लिए बंद होगी कैशलेस इलाज की सुविधा

कंपनी ने यह भी कहा कि वह ग्राहकों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगी और कोशिश की जा रही है कि मरीजों को कैशलेस इलाज की सुविधा बिना बाधा मिले।

एएचपीआई का दूसरा कदम – केयर हेल्थ इंश्योरेंस को भी नोटिस

गौरतलब है कि एएचपीआई ने सिर्फ बजाज आलियांज ही नहीं बल्कि केयर हेल्थ इंश्योरेंस को भी इसी तरह का नोटिस भेजा है। 22 अगस्त को एएचपीआई ने केयर हेल्थ को पत्र लिखकर दरें संशोधित करने की मांग की थी और 31 अगस्त तक का समय दिया था। यदि जवाब नहीं मिला, तो 1 सितंबर से उसके पॉलिसीहोल्डर्स के लिए भी कैशलेस इलाज की सुविधा बंद की जा सकती है।

मरीजों और पॉलिसीहोल्डर्स पर असर

एएचपीआई के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर उन मरीजों पर पड़ेगा, जो बजाज आलियांज की हेल्थ पॉलिसी पर निर्भर हैं। अब उन्हें इलाज के समय सीधे भुगतान करना पड़ सकता है और बाद में क्लेम प्रोसेस के जरिए रिइम्बर्समेंट लेना होगा। इससे:

  • इमरजेंसी मरीजों के लिए परेशानी बढ़ सकती है।

  • आम लोगों की जेब पर अचानक बोझ पड़ सकता है।

  • इलाज में देरी की स्थिति भी पैदा हो सकती है।

एएचपीआई और बजाज आलियांज के बीच यह विवाद हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर में मौजूद असंतुलन को उजागर करता है। एक ओर अस्पताल बढ़ती लागत का हवाला देकर दरें बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर बीमा कंपनियां अपने ग्राहकों के प्रीमियम को नियंत्रित रखना चाहती हैं।

अब देखना यह होगा कि 1 सितंबर से पहले दोनों पक्षों के बीच कोई समाधान निकल पाता है या नहीं। अगर समझौता नहीं हुआ, तो हजारों पॉलिसीहोल्डर्स को कैशलेस इलाज की सुविधा से हाथ धोना पड़ सकता है।

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SIP Calculation: SIP की मदद से छोटे निवेश से बड़े भविष्य का फंड तैयार करना अब हुआ आसान

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SIP Calculation: SIP की मदद से छोटे निवेश से बड़े भविष्य का फंड तैयार करना अब हुआ आसान

SIP Calculation: म्यूचुअल फंड में निवेश का सबसे आसान और लोकप्रिय तरीका SIP (Systematic Investment Plan) है। SIP के माध्यम से आप छोटे-छोटे किस्तों में निवेश कर सकते हैं। इससे न केवल निवेश की आदत बनती है बल्कि लंबी अवधि में बड़ा फंड भी तैयार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि आप हर महीने केवल 5000 रुपये का SIP शुरू करते हैं, तो सही रिटर्न के साथ समय के साथ आप लाखों रुपये का फंड तैयार कर सकते हैं।

SIP कैलकुलेशन: 20 लाख का फंड तैयार करना

अगर कोई निवेशक हर महीने 5000 रुपये का SIP करता है और 12 प्रतिशत की सालाना दर से रिटर्न मिलता है, तो यह फंड तैयार करने में लगभग 13 से 14 साल का समय लगेगा। 13 वर्षों में 12 प्रतिशत रिटर्न के अनुसार लगभग 18,80,000 रुपये जमा होंगे। वहीं, 14 वर्षों में वही निवेश 12 प्रतिशत रिटर्न पर 21,82,000 रुपये तक पहुंच जाएगा। यह दर्शाता है कि नियमित निवेश और समय का संयोजन लंबी अवधि में निवेशकों के लिए बड़ा लाभ प्रदान करता है।

SIP Calculation: SIP की मदद से छोटे निवेश से बड़े भविष्य का फंड तैयार करना अब हुआ आसान

निवेश से पहले जोखिम का मूल्यांकन

किसी भी म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले उसका जोखिम (Risk) समझना बेहद जरूरी है। जोखिम का आकलन करने के लिए कई पैरामीटर्स देखे जाते हैं। इनमें सबसे प्रमुख हैं बीटा (Beta), स्टैण्डर्ड डिविएशन (Standard Deviation), और शार्प रेशियो (Sharpe Ratio)।

  • बीटा (Beta): अगर किसी फंड का बीटा 1 से कम है, तो यह कम जोखिम वाला माना जाता है। वहीं 1 से अधिक बीटा वाले फंड को जोखिमपूर्ण माना जाता है।

  • स्टैण्डर्ड डिविएशन (Standard Deviation): जब दो फंड की तुलना की जाती है, तो इसका प्रयोग होता है। इसका प्रतिशत जितना कम होगा, फंड उतना ही कम जोखिम वाला माना जाएगा। उदाहरण के लिए, यदि एक फंड का स्टैण्डर्ड डिविएशन 5 प्रतिशत है और दूसरे का 10 प्रतिशत है, तो पहला फंड कम जोखिम वाला है।

  • शार्प रेशियो (Sharpe Ratio): यह फंड के रिटर्न और जोखिम का संतुलन दिखाता है। यदि शार्प रेशियो 1 से कम है, तो फंड का जोखिम कम माना जाएगा। 1.00 से 1.99 तक शार्प रेशियो सामान्य जोखिम को दर्शाता है, जबकि 2.00 से 2.99 तक इसे उच्च जोखिम वाला माना जाता है। 3 या उससे अधिक रेशियो वाले फंड को बहुत उच्च जोखिम वाला माना जाता है।

सही फंड का चुनाव और लाभ

SIP के माध्यम से निवेश करने पर निवेशक छोटे निवेश से बड़े फंड की ओर बढ़ सकते हैं। लेकिन सही फंड का चयन करना जरूरी है। जोखिम और रिटर्न का संतुलन देखकर ही निवेश करें। साथ ही समय और नियमित निवेश की आदत बनाने से लंबी अवधि में वित्तीय सुरक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है। SIP न केवल सुविधाजनक और सरल है, बल्कि यह निवेशकों को बाजार की अस्थिरता के बावजूद नियमित रूप से संपत्ति बनाने का अवसर भी देता है।

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Jane Street पर बड़ी कार्रवाई की तैयारी! टैक्स जांच में नहीं दे रही सहयोग, सरकार ने जताई सख्ती

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Jane Street पर बड़ी कार्रवाई की तैयारी! टैक्स जांच में नहीं दे रही सहयोग, सरकार ने जताई सख्ती

अमेरिकी ट्रेडिंग कंपनी जेन स्ट्रीट (Jane Street) पर भारतीय शेयर बाजार से अवैध कमाई के आरोपों के बाद अब इनकम टैक्स विभाग की जांच में सहयोग न करने के आरोप लगे हैं। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को सामने आई जानकारी में कहा गया है कि कंपनी भारत में चल रहे ऑपरेशन्स और टैक्स से जुड़े मामलों की जांच में ठीक से सहयोग नहीं कर रही है। यह मामला उस समय और गंभीर हो गया जब पहले से ही सेबी (SEBI) की ओर से कंपनी पर अस्थायी ट्रेडिंग प्रतिबंध लगाया गया है।

जरूरी दस्तावेज नहीं दे रही कंपनी, सर्वर भारत से बाहर

इनकम टैक्स विभाग ने जेन स्ट्रीट से जांच के दौरान कई जरूरी दस्तावेज और डेटा की मांग की थी, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने अब तक इन्हें उपलब्ध नहीं कराया है। अधिकारियों का कहना है कि कंपनी का मुख्य सर्वर भारत के बाहर स्थित है, जिसके कारण जांच एजेंसियां उस तक पहुंच नहीं बना पा रही हैं। इसके अलावा, कंपनी की अकाउंट बुक भी विदेश में रखी गई है, जबकि भारतीय कानून के अनुसार भारत में काम करने वाली विदेशी कंपनियों को अपने रिकॉर्ड भारत में ही रखना अनिवार्य होता है। सूत्रों के अनुसार, कंपनी के कर्मचारी भी पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहे हैं, जिससे जांच में काफी अड़चनें आ रही हैं।

Jane Street पर बड़ी कार्रवाई की तैयारी! टैक्स जांच में नहीं दे रही सहयोग, सरकार ने जताई सख्ती

सेबी के आदेश के बाद शुरू हुई गहन जांच

इस मामले की गंभीरता तब और बढ़ी जब बाजार नियामक सेबी ने 4 जुलाई को जेन स्ट्रीट पर अस्थायी ट्रेडिंग बैन लगा दिया था। सेबी ने आरोप लगाया था कि कंपनी ने डेरिवेटिव्स का गलत इस्तेमाल कर भारतीय शेयर बाजार में हेरफेर की। इसके बाद इनकम टैक्स विभाग ने भी कंपनी की भारत में मौजूद ऑफिसों और उसकी स्थानीय साझेदार कंपनी नुवामा वेल्थ (Nuwama Wealth) के साथ मिलकर जांच शुरू की है। अधिकारी अब इन दोनों के फाइनेंशियल रिकॉर्ड और ऑपरेशनल डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं ताकि इस गड़बड़ी की पूरी तस्वीर सामने लाई जा सके।

$4.23 बिलियन की कमाई, जांच में बाधा बन रहा सहयोग का अभाव

सेबी की शुरुआती जांच में यह सामने आया था कि जेन स्ट्रीट ने जनवरी 2023 से मई 2025 के बीच भारत में ट्रेडिंग से $4.23 बिलियन (लगभग ₹35,000 करोड़) की कमाई की थी। यह कमाई मुख्य रूप से डेरिवेटिव ट्रेडिंग के जरिए हुई, जिसे संदेहास्पद बताया गया है। हालांकि, इनकम टैक्स विभाग की जांच अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि कंपनी के सहयोग की कमी के कारण उन्हें कई अहम जानकारियां नहीं मिल पा रही हैं। यह मामला अब भारत सरकार और वित्तीय एजेंसियों के लिए राष्ट्रीय वित्तीय सुरक्षा और विदेशी निवेश नियंत्रण से जुड़ा बड़ा विषय बन चुका है। आने वाले दिनों में इस पर और कड़ी कार्रवाई हो सकती है।

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